Friday, 27 January 2017

गीता प्रबोधनी - चौथा अध्याय (पोस्ट.१२)


यस्य सर्वे समारम्भा: कामसङ्कल्पवर्जिता:।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा:॥ १९॥

जिसके सम्पूर्ण कर्मोंके आरम्भ संकल्प और कामनासे रहित हैं तथा जिसके सम्पूर्ण कर्म ज्ञानरूपी अग्निसे जल गये हैं, उसको ज्ञानिजन भी पण्डित (बुद्धिमान्) कहते हैं।

व्याख्या—

जो कर्मयोगी कर्म करते हुए निर्लिप्त (संकल्प और कामनासे रहित) रहता है और निर्लिप्त रहते हुए सब कर्म करता है, वह सम्पूर्ण ज्ञानियोंमें श्रेष्ट है ।

ॐ तत्सत् !

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