Wednesday, 5 April 2017

गीता प्रबोधनी - छठा अध्याय (पोस्ट.१९)


यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥ २६॥

यह अस्थिर और चंचल मन जहाँ-जहाँ विचरण करता है, वहाँ-वहाँ से हटाकर इसको एक परमात्मा में ही भली भाँति लगाये।

ॐ तत्सत् !

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