युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते॥ २८॥
इस प्रकार अपने-आपको सदा परमात्मामें लगाता हुआ पापरहित योगी सुखपूर्वक ब्रह्मप्राप्तिरूप अत्यन्त सुखका अनुभव कर लेता है।
व्याख्या—
अपने-आपको परमात्मामें लगानेका तात्पर्य है-कुछ भी चिन्तन न करना अर्थात् बाहर-भीतरसे चुप, शान्त हो जाना । न संसार (बाहर)-का चिन्तन हो, न परमात्मा (भीतर)- का । कुछ भी चिन्तन न करनेसे स्वतः साधककी स्थिति परमात्मतत्त्वमें होती है ।
मनको परमात्मामें लगाना करणसापेक्ष साधन है (गीता ६ । २६), और अपने-आपको परमात्मामें लगाना करणनिरपेक्ष साधन है । करणनिरपेक्ष साधनमें जड़ताका सम्बन्ध सर्वथा न रहनेसे साधक सुखपूर्वक परमात्माको प्राप्त कर लेता है । परन्तु करणसापेक्ष साधनमें परमात्माको कठिनतापूर्वक प्राप्त किया जाता है (गीत १२ । ५ ) ।
ॐ तत्सत् !
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