॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥ ३०॥
जो (भक्त) सबमें मुझे देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
व्याख्या—
ध्यानयोगके जिस साधकमें भक्तिके सम्स्कार रहते हैं, जो भक्तिको ही मुख्य मानता है, वह जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद होनेपर सबमें भगवान्को और भगवान्में सबको देखता है । अतः उसके लिये भगवान् अदृश्य नहीं होते और वह भगवान्के लिये अदृश्य नहीं होता । जब एक भगवान्के सिवाय दूसरी सत्ता है ही नहीं, भगवान् ही अनेक रूपोंमें प्रकट हो रहे हैं, फिर भगवान् कैसे छिपें, कहाँ छिपें, किसके पीछे छिपें ?
ॐ तत्सत् !
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥ ३०॥
जो (भक्त) सबमें मुझे देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
व्याख्या—
ध्यानयोगके जिस साधकमें भक्तिके सम्स्कार रहते हैं, जो भक्तिको ही मुख्य मानता है, वह जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद होनेपर सबमें भगवान्को और भगवान्में सबको देखता है । अतः उसके लिये भगवान् अदृश्य नहीं होते और वह भगवान्के लिये अदृश्य नहीं होता । जब एक भगवान्के सिवाय दूसरी सत्ता है ही नहीं, भगवान् ही अनेक रूपोंमें प्रकट हो रहे हैं, फिर भगवान् कैसे छिपें, कहाँ छिपें, किसके पीछे छिपें ?
ॐ तत्सत् !
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