सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन:॥ २९॥
सब जगह अपने स्वरूपको देखनेवाला और ध्यानयोगसे युक्त अन्त:करणवाला (सांख्ययोगी) अपने स्वरूपको सम्पूर्ण प्राणियोंमें स्थित देखता है और सम्पूर्ण प्राणियोंको अपने स्वरूपमें देखता है।
व्याख्या—
ध्यानयोगके जिस साधकमें ज्ञानके संस्कार रहते हैं, जो ज्ञानको मुख्य मानता है, वह जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद होनेपर स्वयंको सब प्राणियोंमें तथा सब प्राणियोंको स्वयंमें अनुभव करता है ।
ॐ तत्सत् !
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन:॥ २९॥
सब जगह अपने स्वरूपको देखनेवाला और ध्यानयोगसे युक्त अन्त:करणवाला (सांख्ययोगी) अपने स्वरूपको सम्पूर्ण प्राणियोंमें स्थित देखता है और सम्पूर्ण प्राणियोंको अपने स्वरूपमें देखता है।
व्याख्या—
ध्यानयोगके जिस साधकमें ज्ञानके संस्कार रहते हैं, जो ज्ञानको मुख्य मानता है, वह जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद होनेपर स्वयंको सब प्राणियोंमें तथा सब प्राणियोंको स्वयंमें अनुभव करता है ।
ॐ तत्सत् !
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