Friday, 24 February 2017

गीता प्रबोधनी - पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०१)

अर्जुन उवाच

सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्॥ १॥

अर्जुन बोले—हे कृष्ण ! आप कर्मों का स्वरूप से त्याग करने की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं । अत: इन दोनों साधनों में जो एक निश्चितरूप से कल्याणकारक हो, उसको मेरे लिये कहिये ।

व्याख्या—

चौथे अध्याय के अन्त में भगवान्‌ ने अर्जुन को युद्ध के किये खड़ा होने की आज्ञा दी थी । परन्तु यहाँ अर्जुन के प्रश्न से पता लगता है कि उनके भीतर युद्ध करने अथवा न करने की और विजय प्राप्त करने अथवा न करने की अपेक्षा भी ‘मेरा कल्याण कैसे हो’-इसकी विशेष चिन्ता है । उनके अन्तःकरणमें युद्ध की तथा विजय प्राप्त करने की अपेक्षा भी कल्याण का अधिक महत्त्व है । अतः प्रस्तुत श्लोक से पहले भी अर्जुन दो बार अपने कल्याण की बात पूछ चुके हैं (गीता २ । ७, ३ । २) ।

ॐ तत्सत् !

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