Friday, 24 February 2017

गीता प्रबोधनी - पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०२)


श्रीभगवानुवाच

सन्न्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते॥ २॥

श्रीभगवान् बोले—संन्यास (सांख्ययोग) और कर्म-योग दोनों ही कल्याण करनेवाले हैं। परन्तु उन दोनोंमें भी कर्मसंन्यास (सांख्ययोग)-से कर्मयोग श्रेष्ठ है।

व्याख्या—

भगवान्‌ कहते हैं कि यद्यपि सांख्ययोग और कर्मयोग-दोनोंसे ही मनुष्यका कल्याण हो जाता है, तथापि कर्मयोगके अनुसार अपने कर्तव्यका पालन करना ही श्रेष्ट है । कर्मयोग सांख्ययोगकी अपेक्षा भी श्रेष्ट तथा सुगम है ।

ॐ तत्सत् !

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