श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ ३९॥
जो जितेन्द्रिय तथा साधन-परायण है, ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है और ज्ञान को प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है।
व्याख्या—
जिसकी इन्द्रियाँ वशमें होती हैं, वही साधन-परायण होता है । जो साधन-परायण होता है, वही पूर्ण श्रद्धावान् होता है । ऐसे पूर्ण श्रद्धावान् साधक को ज्ञान की प्राप्ति तत्काल हो जाती है । अतः ज्ञान की प्राप्ति में वक्तापर तथा सिद्धान्त पर श्रद्धा-विश्वास मुख्य कारण है ।
ॐ तत्सत् !
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ ३९॥
जो जितेन्द्रिय तथा साधन-परायण है, ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है और ज्ञान को प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है।
व्याख्या—
जिसकी इन्द्रियाँ वशमें होती हैं, वही साधन-परायण होता है । जो साधन-परायण होता है, वही पूर्ण श्रद्धावान् होता है । ऐसे पूर्ण श्रद्धावान् साधक को ज्ञान की प्राप्ति तत्काल हो जाती है । अतः ज्ञान की प्राप्ति में वक्तापर तथा सिद्धान्त पर श्रद्धा-विश्वास मुख्य कारण है ।
ॐ तत्सत् !
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