Friday, 24 February 2017

गीता प्रबोधनी- पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०४)

साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता:।
एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्॥ ४॥

बेसमझ लोग सांख्ययोग और कर्मयोगको अलग-अलग (फलवाले) कहते हैं, न कि पण्डितजन;
क्योंकि इन दोनोंमेंसे एक साधनमें भी अच्छी तरहसे स्थित मनुष्य दोनोंके फल (परमात्माको) प्राप्त कर लेता है।

व्याख्या—
भगवान्‌के मतमें ज्ञानयोग और कर्मयोग-दोनों ही लौकिक साधन हैं (गीता ३ । ३) और दोनोंका परिणाम भी एक ही है । दोनों ही साधनोंकी पूर्णता होनेपर साधक संसार-बन्धनसे मुक्त होकर आत्म-साक्षात्कार कर लेता है । अतः दोनों ही मोक्षप्राप्तिके स्वतन्त्र साधन हैं ।

ॐ तत्सत् !

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