Friday, 24 February 2017

गीता प्रबोधनी- पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.०५)

यत्साङ्ख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं साङ्ख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति॥ ५॥

सांख्ययोगियों के द्वारा जो तत्त्व प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों के द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है।
अत: जो मनुष्य सांख्ययोग और कर्मयोगको (फलरूपमें) एक देखता है, वही ठीक देखता है।


व्याख्या—
फल एक होने से ज्ञानयोग और कर्मयोग-दोनों साधन समकक्ष हैं ।

ॐ तत्सत् !

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