Thursday, 9 March 2017

गीता प्रबोधनी - पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१३)

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु:।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते॥ १४॥

परमेश्वर मनुष्योंके न कर्तापनकी, न कर्मोंकी और न कर्मफलके साथ संयोगकी रचना करते हैं; किन्तु स्वभाव ही बरत रहा है।

व्याख्या—

स्वरूपकी तरह परमात्मा भी किसीको कर्म करनेकी प्रेरणा नहीं करते । मनुष्य कर्म करनेमें स्वतन्त्र है । कर्तापन, कर्म और कर्मफलके साथ संयोग जीवका काम है, परमात्माका नहीं । अतः इनका त्याग करनेका दायित्व भी जीवपर ही है । जीव ही अज्ञानवश प्रकृतिके साथ सम्बन्ध जोड़कर कर्मोंका कर्ता बनता है और कर्मफलके साथ सम्बन्ध जोड़कर सुखी-दुःखी होता है ।

ॐ तत्सत् !

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