Thursday, 9 March 2017

गीता प्रबोधनी - पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.१७)


इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन:।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिता:॥ १९॥

जिनका अन्त:करण समतामें स्थित है, उन्होंने इस जीवित-अवस्थामें ही सम्पूर्ण संसारको जीत लिया है अर्थात् वे जीवन्मुक्त हो गये हैं; क्योंकि ब्रह्म निर्दोष और सम है, इसलिये वे ब्रह्ममें ही स्थित हैं।

व्याख्या—

परमात्मतत्त्वमें स्थित हुए महापुरुषकी पहचान है- बुद्धिमें समता आना अर्थात्‌ बुधिमें राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि विकार न होना । जिसकी बुद्धि समतामें स्थित हो गयी है, उसे जीवन्मुक्त समझना चाहिये ।

ॐ तत्सत् !

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