इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन:।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिता:॥ १९॥
जिनका अन्त:करण समतामें स्थित है, उन्होंने इस जीवित-अवस्थामें ही सम्पूर्ण संसारको जीत लिया है अर्थात् वे जीवन्मुक्त हो गये हैं; क्योंकि ब्रह्म निर्दोष और सम है, इसलिये वे ब्रह्ममें ही स्थित हैं।
व्याख्या—
परमात्मतत्त्वमें स्थित हुए महापुरुषकी पहचान है- बुद्धिमें समता आना अर्थात् बुधिमें राग-द्वेष, हर्ष-शोक आदि विकार न होना । जिसकी बुद्धि समतामें स्थित हो गयी है, उसे जीवन्मुक्त समझना चाहिये ।
ॐ तत्सत् !
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