Friday, 24 March 2017

गीता प्रबोधनी - छठा अध्याय (पोस्ट.११)


शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन:।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥ ११॥
तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय:।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये॥ १२॥

शुद्ध भूमिपर, जिसपर (क्रमश:) कुश, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न अत्यन्त ऊँचा है और न अत्यन्त नीचा, ऐसे अपने आसनको स्थिर स्थापन करके।

उस आसनपर बैठकर चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको वशमें रखते हुए मनको एकाग्र करके अन्त:करणकी शुद्धिके लिये योगका अभ्यास करे।

ॐ तत्सत् !

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