शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन:।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्॥ ११॥
तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय:।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये॥ १२॥
शुद्ध भूमिपर, जिसपर (क्रमश:) कुश, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न अत्यन्त ऊँचा है और न अत्यन्त नीचा, ऐसे अपने आसनको स्थिर स्थापन करके।
उस आसनपर बैठकर चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको वशमें रखते हुए मनको एकाग्र करके अन्त:करणकी शुद्धिके लिये योगका अभ्यास करे।
ॐ तत्सत् !
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