Saturday, 11 February 2017

गीता प्रबोधनी - चौथा अध्याय (पोस्ट.२४)

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञ: परन्तप।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते॥ ३३॥

हे परन्तप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञसे ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। सम्पूर्ण कर्म और पदार्थ ज्ञान (तत्त्वज्ञान)-में समाप्त (लीन) हो जाते हैं।

व्याख्या—

पहले कहे गये बारह यज्ञ ‘द्रव्यमय यज्ञ’ हैं । उन सबकी अपेक्षा आगे कहा जानेवाला ‘ज्ञानयज्ञ’ श्रेष्ट है; क्योंकि ज्ञान होनेपर सम्पूर्ण कर्मों और पदार्थोंसे सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है । द्रव्यमय यज्ञमें क्रिया तथा पदार्थकी मुख्यता है और ज्ञानयज्ञमें विवेक-विचारकी मुख्यता है ।

ॐ तत्सत् !

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