Wednesday, 8 February 2017

गीता प्रबोधनी चौथा अध्याय (पोस्ट.२०)



सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुहृति ज्ञानदीपिते ॥27

अन्य योगी लोग सम्पूर्ण इन्द्रियों की क्रियाओं को और प्राणों की क्रियाओं को ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयमयोग (समाधियोग) रूप में अग्नि में हवन किया करते हैं।

व्याख्या- मन-बुद्धि वाला सम्पूर्ण इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाओं को रोक कर समाधि में स्थित हो जाना समाधिरूप यज्ञहै।

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