अन्य योगी लोग सम्पूर्ण इन्द्रियों की क्रियाओं को और प्राणों की क्रियाओं को
ज्ञान से प्रकाशित आत्म संयमयोग (समाधियोग) रूप में अग्नि में हवन किया करते हैं।
व्याख्या- मन-बुद्धि वाला सम्पूर्ण इन्द्रियों और प्राणों की क्रियाओं को रोक
कर समाधि में स्थित हो जाना ‘समाधिरूप यज्ञ’ है।
No comments:
Post a Comment