कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ ४७॥
कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अत: तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी कर्म न करनेमें भी आसक्ति न हो।
व्याख्या—
एक कर्म-विभाग (करना) है और एक फल-विभाग (होना) है । ‘करना’ मनुष्यके अधीन है और ‘होना’ प्रारब्ध अथवा परमात्माके अधीन है । प्रारब्धसे अथवा परमात्माके विधानसे मनुष्यको जो कुछ मिला है, उसे अपने भोगमें न लगाकर दूसरोंकी सेवामें लगाना मनुष्यका कर्तव्य है ।
ॐ तत्सत् !
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ ४७॥
कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अत: तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी कर्म न करनेमें भी आसक्ति न हो।
व्याख्या—
एक कर्म-विभाग (करना) है और एक फल-विभाग (होना) है । ‘करना’ मनुष्यके अधीन है और ‘होना’ प्रारब्ध अथवा परमात्माके अधीन है । प्रारब्धसे अथवा परमात्माके विधानसे मनुष्यको जो कुछ मिला है, उसे अपने भोगमें न लगाकर दूसरोंकी सेवामें लगाना मनुष्यका कर्तव्य है ।
ॐ तत्सत् !
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