Wednesday, 16 November 2016

गीता प्रबोधनी - दूसरा अध्याय (पोस्ट.२९)


त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥ ४५॥

वेद तीनों गुणोंके कार्यका ही वर्णन करनेवाले हैं; हे अर्जुन! तू तीनों गुणोंसे रहित हो जा, राग-द्वेषादि द्वन्द्वोंसे रहित हो जा, निरन्तर नित्यवस्तु परमात्मामें स्थित हो जा, योगक्षेमकी चाहना भी मत रख और परमात्मपरायण हो जा।

व्याख्या—

भगवान्‌ अर्जुनको आज्ञा देते हैं कि वेदोंके जिस अंशमें सकामभावका वर्णन है, उसका त्याग करके तू निष्कामभावको ग्रहण कर । मिलने और बिछुड़नेवाले संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करके तू नित्यरहनेवाली चिन्मय सत्तामें अपनी स्वाभाविक स्थितिका अनुभव कर । योग (अप्राप्त वस्तुकी प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त वस्तुकी रक्षा)- की कामनाका भी त्याग कर दे; क्योंकि कामनामात्र बन्धनकारक है ।

पहले बयालीसवें श्लोकमें भगवान्‌ने बताया कि जो मनुष्य ‘वेदवादरताः’ (वेदोक्त सकाम कर्मोंमें रुचि रखनेवाले) होते हैं, उनकी बुद्धि व्यवसायात्मिका नहीं होती, कारणकि व्यवसायात्मिका बुद्धिके लिये निष्काम होना आवश्यक है । वेद तीनों गुणोंके कार्यका वर्णन करनेवाले हैं, इसलिये भगवान्‌ अर्जुन्‌को तीनोंके गुणोंसे रहित होनेकी आज्ञा देते हैं- ‘निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन’ ।

वेदोक्त सकाम अनुष्ठानोंको करनेवाले मनुष्योंको योगक्षेमकी प्राप्ति नहीं होती और वे संसार-चक्रमें पड़े रहते हैं- ‘एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते’ (गीता ९ । २१) । संसार-चक्रमें पड़नेका कारण वेद नहीं हैं, प्रत्युत कामना है ।

भगवत्परायण साधक को भोग व संग्रह की कामना तो दूर रही, योगक्षेम की भी कामना नहीं करनी चाहिये । इसलिये भगवान्‌ अर्जुनसे कहते हैं कि तू मेरे परायण होकर योगक्षेम की भी कामना का त्याग कर दे अर्थात्‌ सांसारिक अथवा पारमार्थिक कोई भी कामना न रखकर सर्वथा निष्काम हो जा ।

भगवान्‌ के समान दयालु कोई नहीं है । वे कहते हैं कि भक्तों का योगक्षेम मैं स्वयं वहन करता हूँ-‘योगक्षेमं वहाम्यहम्‌’ (गीता ९ । २२) मैं उनके साधन की सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं को भी दूर कर देता हूँ--‘मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि’ (१८ । ५८) और उनका उद्धार भी कर देता हूँ- तेषामहं समुद्धर्ता०’ (१२ । ७) अतः भगवान्‌ के भजन में लगे हुए साधक को अपने साधन तथा उद्धार के विषय में कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिये ।

ॐ तत्सत् !

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