Monday, 14 November 2016

गीता प्रबोधनी - दूसरा अध्याय (पोस्ट.२७)


व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्॥ ४१॥

हे कुरुनन्दन ! इस (समबुद्धिकी प्राप्ति)-के विषयमें निश्चयवाली बुद्धि एक ही होती है। जिनका एक निश्चय नहीं है, ऐसे मनुष्योंकी बुद्धियाँ अनन्त और बहुत शाखाओंवाली ही होती हैं।

व्याख्या—

समता की प्राप्ति उसी को होती है, जिसका उद्देश्य एक होता है । अनेक उद्देश्य कामना के कारण होते हैं ।

ॐ तत्सत् !

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