Friday, 20 January 2017

गीता प्रबोधनी - चौथा अध्याय (पोस्ट.०३)


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ ७॥
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हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने-आप को (साकाररूप से) प्रकट करता हूँ।

ॐ तत्सत् !

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