सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति॥ ३३॥
सम्पूर्ण प्राणी प्रकृतिको प्राप्त होते हैं। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृतिके अनुसार चेष्टा करता है। (फिर इसमें किसीका) हठ क्या करेगा?
व्याख्या—
चेतन-तत्त्व सम रहता है और प्रकृति विषम रहती है । इसलिये तत्त्वज्ञ महापुरुषोंके स्वरूपमें कोई भिन्नता नहीं होती, पर उनकी प्रकृति (स्वभाव)-में भिन्नता होती है । उनका स्वभाव राग-द्वेषसे रहित होनेके कारण महान् शुद्ध होता है । स्वभाव शुद्ध होनेपर भी तत्त्वज्ञ महापुरुषोंके स्वभावमें (जिस साधन-मार्गसे सिद्धि प्राप्त की है, उस मार्गके सूक्ष्म संस्कार रहनेके कारण) भिन्नता रहती है और उस स्वभावके अनुसार ही उनके द्वारा भिन्न-भिन्न व्यवहार होता है ।
ॐ तत्सत् !
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति॥ ३३॥
सम्पूर्ण प्राणी प्रकृतिको प्राप्त होते हैं। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृतिके अनुसार चेष्टा करता है। (फिर इसमें किसीका) हठ क्या करेगा?
व्याख्या—
चेतन-तत्त्व सम रहता है और प्रकृति विषम रहती है । इसलिये तत्त्वज्ञ महापुरुषोंके स्वरूपमें कोई भिन्नता नहीं होती, पर उनकी प्रकृति (स्वभाव)-में भिन्नता होती है । उनका स्वभाव राग-द्वेषसे रहित होनेके कारण महान् शुद्ध होता है । स्वभाव शुद्ध होनेपर भी तत्त्वज्ञ महापुरुषोंके स्वभावमें (जिस साधन-मार्गसे सिद्धि प्राप्त की है, उस मार्गके सूक्ष्म संस्कार रहनेके कारण) भिन्नता रहती है और उस स्वभावके अनुसार ही उनके द्वारा भिन्न-भिन्न व्यवहार होता है ।
ॐ तत्सत् !
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