युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥ १२॥
कर्मयोगी कर्मफलका त्याग करके नैष्ठिकी शान्तिको प्राप्त होता है। परन्तु सकाम मनुष्य कामनाके कारण फलमें आसक्त होकर बँध जाता है।
व्याख्या—
कर्म बाँधनेवाले नहीं होते, प्रत्युत कर्मफलकी इच्छा बाँधनेवाली होती है । कर्म न तो बाँधते हैं, न मुक्त ही करते हैं । कर्मोंमें सकामभाव ही बाँधनेवाला और निष्कामभाव मुक्त करने वाला होता है ।
ॐ तत्सत् !
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