आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-
समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥ ७०॥
जैसे (सम्पूर्ण नदियोंका) जल चारों ओरसे जलद्वारा परिपूर्ण समुद्रमें आकर मिलता है,
पर (समुद्र अपनी मर्यादामें) अचल स्थित रहता है,
ऐसे ही सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्यको (विकार उत्पन्न किये बिना ही) प्राप्त होते हैं,
वही मनुष्य परमशान्तिको प्राप्त होता है, भोगोंकी कामनावाला नहीं।
ॐ तत्सत् !
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥ ७०॥
जैसे (सम्पूर्ण नदियोंका) जल चारों ओरसे जलद्वारा परिपूर्ण समुद्रमें आकर मिलता है,
पर (समुद्र अपनी मर्यादामें) अचल स्थित रहता है,
ऐसे ही सम्पूर्ण भोग-पदार्थ जिस संयमी मनुष्यको (विकार उत्पन्न किये बिना ही) प्राप्त होते हैं,
वही मनुष्य परमशान्तिको प्राप्त होता है, भोगोंकी कामनावाला नहीं।
ॐ तत्सत् !
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