Thursday, 8 December 2016

गीता प्रबोधनी - दूसरा अध्याय (पोस्ट.४४)


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:॥ ६९॥

सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात (परमात्मा से विमुखता) है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है और जिसमें सब प्राणी जागते हैं (भोग और संग्रह में लगे रहते हैं),वह तत्त्वको जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात है।

व्याख्या—

अब भगवान्‌ सांख्ययोगकी दृष्टिसे कहते हैं; क्योंकि परिणाममें कर्मयोग तथा सांख्ययोग एक ही हैं (गीता ५ । ४-५) । लोग जिस परमात्माकी तरफ से सोये हुए हैं, वह तत्त्वज्ञ महापुरुष और सच्चे साधकोंकी दृष्टिमें दिन के प्रकाश के समान है । सांसारिक लोगों का तो पारमार्थिक साधक के साथ विरोध होता है, पर पारमार्थिक साधक का सांसारिक लोगों के साथ विरोध नहीं होता- ‘निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध ॥’ (मानस, उत्तर० ११२ ख) । सांसारिक लोगों ने तो केवल संसार को ही देखा है, पर पारमार्थिक साधक संसार को भी जानता है और परमात्मा को भी । संसार में रचे-पचे लोग सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति में ही अपनी उन्नति मानते हैं; परन्तु तत्त्वज्ञ महापुरुष और सच्चे साधकों की दृष्टिमें वह रातके अन्धकार की तरह है, उसका किंचिन्मात्र भी महत्त्व नहीं है ।

ॐ तत्सत् !

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