Friday, 30 December 2016

गीता प्रबोधनी - तीसरा अध्याय (पोस्ट.१५)

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ २१॥

श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, दूसरे मनुष्य उसीके अनुसार आचरण करते हैं।

व्याख्या—

समाजमें जिस मनुष्यको लोग श्रेष्ट मानते हैं, उसपर विशेष जिम्मेदारी रहती है कि वह ऐसा कोई आचरण न करे तथा ऐसी कोई बात न कहे, जो लोक-मर्यादा तथा शास्त्र-मर्यादाके विरुद्ध हो ।

ॐ तत्सत् !

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