Friday, 23 December 2016

गीता प्रबोधनी - तीसरा अध्याय (पोस्ट.०९)

यज्ञशिष्टाशिन: सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषै:।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥ १३॥

यज्ञशेष (योग)- का अनुभव करनेवाले श्रेष्ठ मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाते हैं । परन्तु जो केवल अपने लिये ही पकाते अर्थात् सब कर्म करते हैं, वे पापीलोग तो पाप का ही भक्षण करते हैं ।

व्याख्या—

सम्पूर्ण पापोंका कारण है-कामना । अतः कामनापूर्वक अपने लिये कोई भी कर्म करना पाप (बन्धन) है और निष्कामभावसे दूसरोंके लिये कर्म करना पुण्य है । पापका फल दुःख और पुण्यका फल सुख है । इसलिये स्वार्थभावसे अपने लिये कर्म करनेवाले दुःख पाते हैं और निःस्वार्थभावसे दूसरोंके लिये कर्म करनेवाले सुख पाते हैं ।

ॐ तत्सत् !

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