इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविता:।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव स:॥ १२॥
यज्ञसे पुष्ट हुए देवता भी तुमलोगों को (बिना माँगे ही) कर्तव्यपालन की आवश्यक सामग्री देते रहेंगे । इस प्रकार उन देवताओंकी दी हुई सामग्रीको दूसरोंकी सेवामें लगाये बिना जो मनुष्य (स्वयं ही उसका) उपभोग करता है,वह चोर ही है ।
व्याख्या—
शरीर पाञ्चभौतिक सृष्टिमात्र का एक क्षूद्रतम अंश है । अतः स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण-तीनों शरीर संसार के तथा तथा संसार के लिये ही हैं । शरीर स्वयं (स्वरूप)-के किंचिन्मात्र भी काम नहीं आता, प्रत्युत शरीर का सदुपयोग ही स्वयं के काम आता है । शरीर का सदुपयोग है- उसे दूसरों की सेवामें लगाना-संसारकी सेवामें समर्पित कर देना । जो मनुष्य मिली हुई सामग्री का भाग दूसरों (अभावग्रस्तों)-को दिये बिना अकेले ही उसका उपभोग करता है, वो चोर ही है । उसे दण्ड मिलना चाहिये, जो चोर को मिलता है |
ॐ तत्सत् !
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव स:॥ १२॥
यज्ञसे पुष्ट हुए देवता भी तुमलोगों को (बिना माँगे ही) कर्तव्यपालन की आवश्यक सामग्री देते रहेंगे । इस प्रकार उन देवताओंकी दी हुई सामग्रीको दूसरोंकी सेवामें लगाये बिना जो मनुष्य (स्वयं ही उसका) उपभोग करता है,वह चोर ही है ।
व्याख्या—
शरीर पाञ्चभौतिक सृष्टिमात्र का एक क्षूद्रतम अंश है । अतः स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण-तीनों शरीर संसार के तथा तथा संसार के लिये ही हैं । शरीर स्वयं (स्वरूप)-के किंचिन्मात्र भी काम नहीं आता, प्रत्युत शरीर का सदुपयोग ही स्वयं के काम आता है । शरीर का सदुपयोग है- उसे दूसरों की सेवामें लगाना-संसारकी सेवामें समर्पित कर देना । जो मनुष्य मिली हुई सामग्री का भाग दूसरों (अभावग्रस्तों)-को दिये बिना अकेले ही उसका उपभोग करता है, वो चोर ही है । उसे दण्ड मिलना चाहिये, जो चोर को मिलता है |
ॐ तत्सत् !
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