॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥
श्रीभगवानुवाच
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ ३५॥
श्रीभगवान् बोले—हे महाबाहो! यह मन बड़ा चंचल है और इसका निग्रह करना भी बड़ा कठिन है—यह तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है। परन्तु हे कुन्तीनन्दन! अभ्यास और वैराग्यके द्वारा इसका निग्रह किया जाता है।
व्याख्या—
अर्जुन ने दो श्लोकों में प्रश्न किया और भगवान् ने आधे श्लोक में ही उसका उत्तर दिया-इससे सिद्ध होता है कि भगवान् ने मन की एकाग्रता को अधिक महत्त्व नहीं दिया ।
ॐ तत्सत् !
श्रीभगवानुवाच
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ ३५॥
श्रीभगवान् बोले—हे महाबाहो! यह मन बड़ा चंचल है और इसका निग्रह करना भी बड़ा कठिन है—यह तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है। परन्तु हे कुन्तीनन्दन! अभ्यास और वैराग्यके द्वारा इसका निग्रह किया जाता है।
व्याख्या—
अर्जुन ने दो श्लोकों में प्रश्न किया और भगवान् ने आधे श्लोक में ही उसका उत्तर दिया-इससे सिद्ध होता है कि भगवान् ने मन की एकाग्रता को अधिक महत्त्व नहीं दिया ।
ॐ तत्सत् !
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