Friday, 14 April 2017

गीता प्रबोधनी- छठा अध्याय (पोस्ट.२६)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥ 

अर्जुन उवाच
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त: साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्॥ ३३॥
चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥ ३४॥

अर्जुन बोले—
हे मधुसूदन! आपने समतापूर्वक जो यह योग कहा है, मनकी चंचलताके कारण मैं इस योगकी स्थिर स्थिति नहीं देखता हूँ।
कारण कि हे कृष्ण! मन (बड़ा ही) चंचल, प्रमथनशील, दृढ़ (जिद्दी) और बलवान् है। उसको रोकना मैं (आकाशमें स्थित) वायुकी तरह अत्यन्त कठिन मानता हूँ।

ॐ तत्सत् !

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