Saturday, 22 April 2017

गीता प्रबोधनी - छठा अध्याय (पोस्ट.३१)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नम:॥


तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्।
यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन॥ ४३॥

हे कुरुनन्दन! वहाँपर उसको पिछले मनुष्यजन्मकी साधन-सम्पत्ति (अनायास ही) प्राप्त हो जाती है। फिर उससे (वह) साधनकी सिद्धिके विषयमें पुन: (विशेषतासे) यत्न करता है।

व्याख्या—

योगियोंके कुलमें जन्म लेनेवाले साधककी बुद्धिमें पूर्वजन्मके बैठे हुए संस्कार स्वतः जाग्रत हो जाते हैं । पहले किया हुआ साधन उसे बिना परिश्रम प्राप्त हो जाता है । सांसारिक सम्पत्ति तो मरनेपर सर्वथा छूट जाती है, पर पारमार्थिक सम्पत्ति मरनेपर भी साथ जाती है । कारण कि सांसारिक सम्पत्ति बाह्य है और पारमार्थिक सम्पत्ति आन्तरिक । स्वयंमें बैठी बात नष्ट नहीं होती ।

ॐ तत्सत् !

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