Thursday, 16 March 2017

गीता प्रबोधनी - पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट.२२)

योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।
स योगी ब्रह्रानिर्वाणां ब्रह्राभूतोऽधिगच्छति ॥२४॥
लभन्ते ब्रह्रानिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: ।
छित्रद्वेधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥२५॥

जो मनुष्य केवल परमात्मा में सुख वाला और केवल परमात्मा में रमण करने वाला है तथा जो केवल परमात्मा में ज्ञान वाला है, वह ब्रह्म में अपनी स्थिति का अनुभव करने वाला (ब्रह्मरूप बना हुआ) सांख्ययोगी निर्वाण ब्रह्म को प्राप्त होता है।
जिनका शरीर मन-बुद्धि-इन्द्रियों सहित वश में है, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं, निके सम्पूर्ण संशय मिट गये हैं, जिनके सम्पूर्ण दोष नष्ट हो गये हैं, वे विवेकी साधक निर्वाण ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। 
 
ॐ तत्सत् !  

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