Saturday, 7 January 2017

गीता प्रबोधनी - तीसरा अध्याय (पोस्ट.१९)


तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो:।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥ २८॥

परन्तु हे महाबाहो ! गुण-विभाग और कर्म-विभागको तत्त्वसे जाननेवाला महापुरुष 'सम्पूर्ण गुण ही गुणोंमें बरत रहे हैं—ऐसा मानकर उनमें आसक्त नहीं होता।

व्याख्या—

यह सिद्धान्त है कि संसार (पदार्थ और क्रिया)- से अलग होनेपर ही संसारक ज्ञान होता है और परमात्मासे एक होने पर ही परमात्माका ज्ञान होता है । कारण यह है कि वास्तवमें हम संसारसे अलग और परमात्मासे एक हैं । तत्त्वज्ञ महापुरुष गुण-विभाग (पदार्थ) और कर्म-विभाग (क्रिया)- से सर्वथा अलग होनेपर यह जान लेता है कि संपूर्ण गुण ही गुणोंमें बरत रहे हैं । स्वरूपमें कभी कोई क्रिया नहीं होती ।
ॐ तत्सत् !

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