य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ १९॥
जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरीको मारनेवाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता है, वे दोनों ही इसको नहीं जानते; क्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।
व्याख्या—
शरीरीमें कर्तापन नहीं है और मृत्युरूप विकार भी नहीं है । कर्तापन आदि सभी विकार प्रकृतिसे मानेहुए सम्बन्ध (मैं-पन)- में ही हैं ।
ॐ तत्सत् !
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ १९॥
जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरीको मारनेवाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता है, वे दोनों ही इसको नहीं जानते; क्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।
व्याख्या—
शरीरीमें कर्तापन नहीं है और मृत्युरूप विकार भी नहीं है । कर्तापन आदि सभी विकार प्रकृतिसे मानेहुए सम्बन्ध (मैं-पन)- में ही हैं ।
ॐ तत्सत् !
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