ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ ६२॥
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ ६३॥
विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे (बाधा लगनेपर) क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धि (विवेक)-का नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है।
व्याख्या—
विषयभोगों को भोगना तो दूर रहा, उनका रागपूर्वक चिन्तन करनेमात्र से साधक पतन की ओर चला जाता है; कारण कि भोगों का चिन्तन भी भोग भोगने से कम नहीं है ।
ॐ तत्सत् !
सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ ६२॥
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ ६३॥
विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे (बाधा लगनेपर) क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धि (विवेक)-का नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है।
व्याख्या—
विषयभोगों को भोगना तो दूर रहा, उनका रागपूर्वक चिन्तन करनेमात्र से साधक पतन की ओर चला जाता है; कारण कि भोगों का चिन्तन भी भोग भोगने से कम नहीं है ।
ॐ तत्सत् !
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