तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर:।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ ६१॥
कर्मयोगी साधक उन सम्पूर्ण इन्द्रियोंको वशमें करके मेरे परायण होकर बैठे;क्योंकि जिसकी इन्द्रियाँ वशमें हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
व्याख्या—
साधनकी पूर्णताके लिये भगवान्की परायणता आवश्यक है । भगवान्के परायण होनेसे इन्द्रियाँ सुगमतापूर्वक वशमें हो जाती हैं । अपने पुरुषार्थसे इन्द्रियोंको सर्वथा वशमें करना कठिन है । इन्द्रियाँ सर्वथा वशमें होनेसे ही बुद्धि स्थिर होती है ।
ॐ तत्सत् !
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ ६१॥
कर्मयोगी साधक उन सम्पूर्ण इन्द्रियोंको वशमें करके मेरे परायण होकर बैठे;क्योंकि जिसकी इन्द्रियाँ वशमें हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
व्याख्या—
साधनकी पूर्णताके लिये भगवान्की परायणता आवश्यक है । भगवान्के परायण होनेसे इन्द्रियाँ सुगमतापूर्वक वशमें हो जाती हैं । अपने पुरुषार्थसे इन्द्रियोंको सर्वथा वशमें करना कठिन है । इन्द्रियाँ सर्वथा वशमें होनेसे ही बुद्धि स्थिर होती है ।
ॐ तत्सत् !
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