Friday, 4 November 2016

गीता प्रबोधनी - दूसरा अध्याय (पोस्ट.२०)


अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥ २८॥

हे भारत ! सभी प्राणी जन्मसे पहले अप्रकट थे और मरनेके बाद अप्रकट हो जायँगे, केवल बीचमें ही प्रकट दीखते हैं। अत: इसमें शोक करनेकी बात ही क्या है?

व्याख्या—

शरीरी स्वयं अविनाशी है, शरीर विनाशी है । स्थूलदृष्टि से केवल शरीरों को ही देखें तो वे जन्म से पहले भी हमारे साथ नहीं थे और मरने के बाद भी वे हमारे साथ नहीं रहेंगे । वर्तमान में वे हमारे साथ मिल हुए-से दीखते हैं, पर वास्तवमें हमारा उनसे प्रतिक्षण वियोग हो रहा है । इस तरह मिले हुए और बिछुड़ने वाले प्राणियों के लिये शोक करने से क्या लाभ ?

ॐ तत्सत् !

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