Friday, 14 October 2016

गीता प्रबोधनी - पहला अध्याय (पोस्ट.१२)


अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय:।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर:॥ ४१॥
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया:॥ ४२॥
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै:।
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता:॥ ४३॥ 
हे कृष्ण ! अधर्म के अधिक बढ़ जानेसे कुलकी स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, और हे वार्ष्णेय ! स्त्रियोंके दूषित होनेपर वर्णसंकर पैदा हो जाते हैं। वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरकमें ले जानेवाला ही होता है। श्राद्ध और तर्पण न मिलनेसे इन कुलघातियों के पितर भी (अपने स्थानसे) गिर जाते हैं। इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषों से कुलघातियों के सदा से चलते आये कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं। 
ॐ तत्सत् !

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